धर्म, जो केवल धारण ही ना किया जाए, तथापि
जिसे धारण करना हर जीव का कर्तव्य है!
जैविक माता पिता के प्रति जीव का कर्तव्य
होता है, की वह उसका आदर करे, सेवा करे. तो क्या करतार, परम पिता परमेश्वर, भगवान, God, अल्लाह आदि के प्रति जीव का कोई कर्तव्य नही होता? जीव का यही शाश्वत कर्म धर्म होता है. इस
धर्म को ऋषि मुनि और संतो ने सनातन धर्म के नाम से व्यक्त किया है.
अथक मनन के पस्चात आप लोगो ने स्थापित किया
है की भगवान वह है जिसमे छः ऐश्वर्य यथा संपूर्ण शक्ति, संपूर्ण सौंदर्या, संपूर्ण ज्ञान, संपूर्ण धन, संपूर्ण स्वास्थ और संपूर्ण त्याग हो.
वैसी शक्ति संपूर्ण ब्रह्मांड मे ही नही
बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड निकायो मे भी मात्र एक ही होगि. यह अलग की बात है की मानव
काल क्षेत्र अनुभव आदि के आधार पर उसकी अभिबयक्तिया अलग अलग रूप मे करे.
एक समय था जब परमाणु ही पदार्थो का सबसे
छोटा कन था. बाद मे इसे एलेक्ट्रान, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन..god
particle इत्यादि
मे तोड़ दिया गया. वास्तव मे ये कन परमाणु मे विधयमान थे, ना की आधुनिक विज्ञान ओर
आधुनिक वैज्ञानिको द्वारा इनका निर्माण किया गया. इसी प्रकार ब्रह्म परमपिता परमेश्वर, GOD अल्लाह आदि का स्वरूप निस्छित और एक ही
है, परंतु
मानव उसकी व्याख्या पूर्णता से नही कर पाया है.
यही कारण है की वेदो मे उसे नेति-नेति
कहा गया है. “अर्थात
यह भी नही -वह भी
नही.”
वह सकार है, निराकार भी है. जो निराकार है वही अपने
संतानो के सेवार्थ, धर्म के रक्षार्थ सकार भी होता है.
इतना ही नही, धार्मिक ज्ञान के विवेचनोपरांत स्थापित
हो गया है की परमपिता परमेश्वर के विभिन्न स्वरूप गो लोक धाम मे निवास करते है और आवस्यकता
अनुसार पृथ्वीलोक पर अवतरित होते है.
भारतीय ऋषियो संतो आदि ने ८४००००० योनिओ
की चर्चा की है, जबकि आधुनिक विज्ञान ८३५०००० से उपर अलग
अलग प्रजातिया खोज चुका है. आत्मा की परिकल्पना स्थापित सत्य बन ही चुकी है. पुनर्जन्म
की अवधारणा पुष्टि होती ही जा रही है. ऐसी अवस्था मे विश्व मानव समुदाय को संप्रदाय-वाद
को तिलांजलि दे सनातन धर्म,
सर्व-स्वीकार्य धर्म को अपनाना चाहिए.
यही त्रिकालवादी सत्य है. इसी मे विश्व का कल्याण है.
OM!
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