Tuesday, 24 January 2017

अहिंसा परमो धर्म



अहिंसा के पुजारी गाँधी जी हिंदुओ की सभा मे सदा एक स्लोक कहा करते थे, अहिंसा परमो धर्म: अर्थात अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है. लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. वास्तव मे सनातन धर्म का यह स्लोक अपने पूर्ण रूप मे इस प्रकार है- अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तथैव च! (अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेयकर है.)




अब्रह्मिक संप्रदायो यथा ईसाई, इस्लाम, यहूदी आदि धर्मो के इस विश्व मे आने से बहुत पूर्व धर्म के लिए हिंसा का अभिप्राय सनातन धर्म के रक्षार्थ वर्णित किया गया. इसमे एक तरफ तो तुलसी की पूजा का विधान है, तो दूसरी तरफ दुशकर्मो के लिए मृितुदंड का भी विधान है. धर्म के स्थापनार्थ हिंसा ग़लत होती तो भगवान कृष्ण बिरवर पार्थ को शत्रुओ से संग्राम करने का आदेश नही देते. 

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् || 7||
 


महाभारत, भीस्म पर्व मे संजय स्वयं कहते है की पुण्यत्माओ के लोको को प्राप्त करने की इक्षा वाले नृिप गण सैन्य शत्रु मे घुस कर युध करते है. अहिंसा को परम धर्म माँस भक्षण और आभ्क्ष्न के प्रसंग मे कहा गया है. धर्म रक्षा या देश रक्षा के लिए रणभूमि के विषय मे यही अहिंसा अधर्म का रूप ग्रहण कर लेती है. यदि युध मे अहिंसा का महत्व होता तो शत्रु सैन्य पर विजय प्राप्त करके धरमपुर्वक पृथ्वी का पालन करे. ऐसा श्रीकृष्ण नही कहते.

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन || 2||


श्रीकृष्ण स्वयं यह भी कहते है की

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || 8||



वास्तव मे लगता है की हिंदूओ की सभाओ मे इस आधे स्लोक का प्रयोग उन्हे कायर बनाने हेतु करते थे. कल्पना कीजिए किसी के परिवार पर, किसी के राष्ट्र पर अगर कोई आक्रमण होता है, ऐसी परिस्थिति मे इस धर्म का पालन किया जा सकता है?
 

कदापि नही! उस परिस्थिति मे हिंसा ही धर्म बन जाएगी!
 

                   JAI SRI KRISHNA!
 
 
 
 

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