Monday, 30 January 2017

"एको ब्रह्म द्वितिओ नास्ति"






 प्रसंग:- दिनांक २९०१२०१७, नागपुर क्रिकेट क्रीड़ा स्थल, समय T-२० मॅच (भारत बनाम इंग्लेंड)

भारतीय पारी का अंतिम ओवरजसप्रीत बुमराह द्वारा गेंद डालते समय टिप्पणी कर्ताओ (वीरू लक्ष्मण आदि) के वाक्य 
"भगवान ही जिताएँगे ये मॅच, पर यहा भगवान भी तो बहुत सारे है., किसका नाम बुमराह ले कर गेंद फेके की जीत 
हासिल हो जाए", हृदय को जाकझोर दिया. अपने आप को मै दिवाकर सिंह रोक नही पाया और सनातन धर्म के विषय 
मे कुछ पंक्तियाँ लिख दी जो इस प्रकार है.
 


1)      भगवान "परमसत्ता" तो एक ही है, इसकी अभिव्यक्ति मानव जिस रूप मे करे. गॉड, अल्लाह, करतार, भगवान आदि उसी परमसत्ता के अलग अलग अभिव्यक्तिया है.


2)      एक राष्ट्र की सत्ता को चलाने हेतु प्रथम सत्ता (प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति), द्वितीय सत्ता, हर अलग अलग विभाग के मंत्री तो इन मंत्रालयो की व्यवस्था को चलाने हेतु प्रशासको की व्यवस्था, तृतीया सत्ता, आदि मानव करता है तो क्या परमपिता परमेश्वर, परब्रह्म, ब्रह्मांड निकायो की सत्ता स्वयं अकेले चलाता है? नही, इस सत्ता को परमपिता अन्यान्य विभूतिओ के मध्यम से चलाता है. जिसे हम देव कहते है. ये देव (देवता) उन्ही की शक्तिओ से अपना अपना कार्य संचालन करते है.



3)      अगर आप किसी देव की स्तुति करते है तो अपने क्षेत्राधिकार की वस्तुओ को दे सकता है. पर परम् सत्य की स्तुति कर आप किसी भी क्षेत्र की वस्तुओ के पाने का उत्तराधिकारी बन जाते है. अतः आप एकाग्रचित्त होकर किसी भी शक्ति मे पूर्ण आस्था रखे तो आप सफल हो सकते है.

4)      कल्पना कीजिए की आप भूखे है. किसी पेड़ से आपको फल मिल गया. आपकी भूख शांत हो गयी. आप उस वृक्ष को भगवान की संज्ञा दे दिए. वास्तव मे वह भगवान नही उनकी एक विभूति है. गीता मे कृष्ण पीपल के वृक्ष के रूप मे अपने आप को दर्शाते है.

5)  आपको जबर्द्श्त भूख लगी है और भोजन भी तयार है, पर जब तक आप उसे उदरस्त नही कीजिएगा आपकी भूख नही मिटेगी. उदर वह अंग है जहा से शरीर के हर अंग को उर्जा मिल जाती है. तैयार भोजन मे सर हाथ पैर आदि किसी भी शारीरिक अंग को डाल देने से भूख शांत नही होती है.

6)      किसी पौधे की वृधि के लिए जल की आवश्यकता होती है पर पौधे को जल उसी स्थिति मे मिलती है जब उसे जड़ मे दिया जाए नकि पत्तिओ, डालीओ ऐवम शाखाओ आदि पर दिया जाए.

7)      इस प्रकार भौतिक सफलता तो देवो के माध्यम से मिल सकती है पर अध्यात्मिक सफलता हेतु ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, परमसत्य के शरण मे ही जाना होगा. इसके लिए कोई अन्य रास्ता नही है.

8)      क्रीड़ा मे हार जीत वाली सफलता तो भगवान की कोई भी बिभूति दिला सकती है. आप उसके शरणागत तो होइए और जब प्रभु की बिभूतियाँ आपको सफलता दिला सकती है तो स्वयं प्रभु क्यो नही? वे तो हमारे रचनाकार पालनहार ऐवम तारनहार है. उन्ही के शरणागत होइए.
 




                 "एको ब्रह्म द्वितिओ नास्ति"
 

 
 

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