"ज़ाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" –
तुलसीदास
वेदो मे परमसत्य को निराकर ऐवम सकार दोनो माना गया है. ऋग्वेद मे कहा
भी गया है, "ऐकम सद बिप्रा बहुदा बदंति”. वास्तव मे वेद निराकार से सकार की
तरफ गमन करते है. परब्रह्म, परमात्मा, परमपिता
परमेश्वर (भगवान) सर्वव्यापी हैं, निराकार भी हैं, सकार भी हैं,
जड़
भी हैं, चेतन
भी हैं, अजर और अमर भी हैंI प्रश्न उठता है की प्रथम कौन? निराकार
या सकार.
भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत गीता मे स्वयं कहते हे की निराकार
ब्रह्म का आधार मै हूँI (Chapter 14, Verse 27)
ब्रह्मणो हि
प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च |
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च || 27||
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च || 27||
वह ब्रह्म अजर,
अमर, शाश्वत ऐवम आनंद से परिपूर्ण है. वह अध्यात्मिक मनन "जिग्यासा का प्रथम बिंदु
है". परमात्मा द्वितीय बिंदु तो परमपिता परमेश्वर तृतीया ऐवम अंतिम बिंदु है.
श्रीमदभगवत मे कहा भी गया है.-
बदन्तितत तत्विद, तत्वम यज ज्ञानँ अद्वयम. (१)ब्रहेम्ति पर्मात्मेति भगवान इतिस्शब्दते (२)
इस प्रकार
निराकार ब्रह्म ऐवम परमात्मा दोनो परमपिता परमेश्वर "कृष्ण" के अधीन है.
अतः परमपिता परमेश्वर का सकार रूप निराकार रूप से पूर्व का है. वेदो मे वर्णित, ऐकम सद बिप्रा बहुदा बदन्ति, नेति-नेति
(यह भी नही वह भी नही). यह प्रदर्शित करता है की परम सत्य तो एक ही है, पर
मनिषियो ने अपने मनन के आधार पर अलग अलग व्याख्याए की है. मनन की पराकाष्ठा के साथ
ही ब्रह्मसंहिता मे कहा गया है कि:-
ईश्वर: परम:
कृष्ण: सत्चित आनंद विग्रह I
अनादिर आदिर
गोविंद, सर्व कारण कारणम II
अतः भगवान,
"परम सत्य" ही प्रथम है, ऐवम निराकार परब्रह्म, परमात्मा,
परमपिता
परमेश्वर कृष्ण के अधीन है.
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